जहां दिलों में वफ़ा का गुजर नहीं होता,
वो एक मकान तो होता है घर नहीं होता,
चले भी आओ कि अब तो हर लम्हा,
बहुत कठिन है अकेले बसर नहीं होता,
चलो खिज़ाओं से पुछें पता बहारों का,
कि दुश्मन से बड़ा कोइ बा-खबर नहीं होता,
सफ़र में यूँ तो हजारों का साथ होता है,
हर एक शख्श मगर हमसफ़र नहीं होता,
नहीं है मेहर-ओ-वफ़ा ए दोस्त अब किसी दिल में,
इसलिये तो किसी भी दुआ में असर नहीं होता..!!!